एक बेटी “जब” पराई हो जाती है…
बचपन से जवानी रह कर मायके मे
वो फिर भी पराया धन कहलाती है।
जिस आँगन मे खेलकर बड़ी हुई
वही मेहमानो की तरह आती है।
जिनसे जिद कर लड़कर छीनती थी खिलौने
उन भाई बहनों के लिए सौगात ढेरों लाती है
बचपन से सहेजकर रखते है माँ बाप उसे
पर आमानत वो इसरो की हो जाती है
एक बेटी “जब” पराई हो जाती है…
पिता कितना भी धनवान पर उससे
उम्र भर के लिए बेटी घर में कहाँ रखी जाती है।
सुंदर वर ऊँचा घर देख ब्याह दिया जाता है उसे
ऐसे एक अबोध कन्या दो घरो की लाज बन जाती है
दो घरो परिवारों के मान का भार अपने काँधे पर रख
वो कन्या खुशी खुशी पराए घर की विदा हो जाती है।
माँ आहे भर भर रोती है भाई बहन गले लगाते है
अपने ही पिता से सारे हक बेटी के ये विदाई ले जाती है…
नही रह जाता अधिकार! माता पिता का उस पर
हाँ ! एक बेटी “जब” पराई हो जाती है, –